Saturday, August 6, 2011

गुरुदेव और महात्मा

गुरुदेव रविंदर नाथ टैगोर का बेशक महात्मा गांधी जी के साथ राजनीतिक मतभेद था लेकिन फिर भी दोनों में एक दूसरे के प्रति आदर सत्कार और स्नेह भाव था। गुरुदेव को राजनीति में कोई दिलचस्पी नहीं थी,इसलिए वह उन कामों में अपनी टांग भी नहीं अड़ाते थे।
गांधी जी ने जब स्वदेशी का नारा देकर सूती कपड़ा कातने और पहनने का आह्वान किया तो उन्होंने इसके लिए गुरुदेव से भी सहयोग मांगा । लेकिन टैगोर का ख्याल था कि चरखा कातने से देश की आर्थिकता सही नहीं हो सकती। गांधी ने अपने राजनीतिक कथाकार शरतचंद्र चैटर्जी को गुरुदेव के पास अपने आंदोलन का समर्थन मांगने के लिए भेजा तो गुरुदेव ने साफ मना कर दिया। इससे गांधी भगत नाराज हो गए। उन्होंने दुकानों से जबरदस्ती विदेशी कपड़े उठाए और गुरुदेव के घर के बरामदे में फेंककर आग लगा दी। गुरुदेव ने उस समय तो कुछ नहीं कहा, लेकिन उन्होंने गांधी जी को लिखा, आप शांति के पुजारी हो और यहां आकर देखो आपके शांति दूत पागलों की तरह कपड़ों को आग लगाकर चीखें मार रहे हैं। क्या यही है आपकी शंाति?
विद्यार्थियों के पढ़ाई छोडक़र राजनीतिक आंदोलन में कूदने के मामले में भी दोनों शख्सियतों में काफी मतभेद रहे ।
गुरुदेव ने विद्यार्थियों से कहा, गांधी आपसे कैसा बलिदान मांग रहे हैं? विद्या की बलि? कृपया आप विद्या हासिल करके संपूर्ण मनुष्य बनें ताकि आपको पता चले कि आपकी जिम्मेवारियां क्या हैं? उन्होंने गांधी जी से भी विद्यार्थियों को आंदोलन में शामिल करने के लिए मना करने के लिए पत्र लिखा। जवाबी पत्र में गांधी ने कहा, गुलाम देश में विद्या हासिल करने का कोई लाभ नहीं है। यही नहीं महात्मा गांधी ने यंग इंडिया में इस विषय पर एक बड़ा लेख भी लिखा। इसमें उन्होंने लिखा, जब घर में आग लगी हो तो शांत होकर नहीं बैठा जा सकता। इसके जवाब में टैगोर ने कहा, इतिहास के बड़े संकट से जूझते अपने साथियों से कदम मिलाकर यदि नहीं चल सकते तो यह भी न को कि मैं ही ठीक हूं , वे गलत हैं।
दोनों शख्सियतों में तुनक मिजाजी चलती रहती थी। एक बार जब गांधी जी शांति निकेतन में आए और गुरुदेव के साथ रहे। गांधी जी जो तले पदार्थों से परहेज करते थे को पूरियां परोसी गईं। उन्होंने कहा, आपको पता है आप जहर खा रहे हो। गुरुदेव ने हंसते हुए कहा, आधी सदी से खा रहा हूं, अभी तक मरा नहीं, आगे भी कुछ नहीं होगा। इसी बीच सैर पर जाने का फैसला हुआ। गांधी जी ने क्या करना था, अपनी छड़ी उठाई और खड़े हो गए। लेकिन गुरुदेव ने सूट पहना, बूट जुराबें कसीं। शीशे के आगे खड़े होकर ब्रश से दाढ़ी को संवारा और टाई ठीक करने लगे। गांधी से रहा न गया उन्होंने कहा, गुरुदेव ,इस उम्र में इतना समय शीशे के आगे खड़े रहना ठीक नहीं। टैगोर बोले, महात्मा, जानबूझकर बदसूरत दिखाई देना भी तो हिंसक होता है।
दोनों में आपसी प्यार भी बहुत था। जब जाति पाति को आधार बनाकर अंग्रेजों ने अलग अलग चुनाव क्षेत्र बना दिए तो बीस सितंबर 1932 को गांधी ने जेल में रहते अनशन शुरू कर दिया। यह कामयाब हो, इसके लिए उन्होंने सबसे पहले गुरुदेव रविंदरनाथ टैगोर को पत्र लिखा और आशीर्वाद मांगा । पत्र अभी डाक में डाला भी नहीं था कि गुुरुदेव का तार आ गया जिसमें लिखा था, भारत की एकता और अखंडता को कायम रखने के लिए अपना अनमोल जीवन कुर्बान करने का आपका फैसला सही है। आपकी महान तपस्या का सम्मान करते हुए हम प्रेम पूर्वक आपके रास्ते पर चलेेंगे। गुरुदेव का मन तार भेजने से भी शांत नहीं हुआ तो वह चार दिन बाद ही यरवदा जेल पूना में महात्मा से मिलने के लिए रवाना हो गए। खतरा भांपते ही अंग्रेज सरकार ने अपना फैसला वापस ले लिया।


इन्द्रप्रीत सिंह