रेड लाइट
'देख बहन 3100 से एक पैसा कम नहीं लूंगी, देना है तो दो नहीं तो मैं खाली चलीÓ
'नहीं.. इतने पैसे तो मेरे पास नहीं हैं, ये पांच सौ रख ले, मैं तुम्हें खुशी से दे रही हूं।Ó
'पांच सौ, ये भी रहने दो, हम अपना रेट नहीं खराब करतीं। Ó
कांता किन्नर का टका सा जवाब सुनकर मेरी पत्नी का चेहरा उतर गया। वह उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहती थी। लेकिन उसकी मांग पूरी करने की हिम्मत भी हमारे में नहीं थी। शादी के दो साल बाद हमारे घर लडक़ा हुआ था। पहला बच्चा होने की जो खुशी कुछ दिन पहले हमारी झोली पड़ी थी। कांता की तीखी जुबां उसे काफूर कर रही थी।
मेरा बेटा जसकंवल मेरे घर बठिंडा में हुआ था लेकिन ट्रांस्फर होने के कारण मुझे चंडीगढ उस समय आना पड़ा जब मेरी पत्नी सातवें महीने में थी। डिलिवरी हमने बठिंडा में ही करवाई। वैसे तो बठिंडा में ही किन्नर घर पर बधाई दे गए थे। मेरी माता ने अपनी यथशक्ति के हिसाब से उन्हें भेंट भी दे दी थी। लेकिन जब हम बच्चे को लेकर चंडीगढ़ अपने घर लौटे तो दूसरे ही दिन किन्नर कांता अपने जत्थे के साथ सुबह होते ही घर आ धमकी। उसने 3100 रुपए नकद और एक सूट लेने की जिद्द पकड़ ली।
मेरा बेटा आपरेशन के जरिए हुआ था। उस पर काफी खर्च हो चुका था। हमारी वित्तीय हालत ऐसी नहीं थी कि कांता की मांग हम सहर्ष पूरी कर सकते।
'तू क्यों बार-बार खाली हाथ लौटने की बात कर रही है। मैंने तुम्हें बताया न कि मेरे ससुराल में हम बधाई ले चुके हैं। अब एक बार फिर से ..Ó
'अरे तो क्या हुआ? पहला बच्चा है , लडक़ा हुआ है, बड़ा होकर अफसर बनेगा। हम कोई ज्यादा तो नहीं मांग रहे। कांता अपना हठ छोडऩे को राजी नहीं थी।Ó
'.. पर हम कहां से दें इतने पैसे, चल ठीक है, पांच सौ के साथ एक सूट भी ले जा। अब तो ठीक है।Ó मेरी पत्नी ने फिर कांता से विनती की।
'बहन मैंने तो पहले ही बता दिया है कि 3100 से एक पैसा कम नहीं लूंगी। हमें रोज रोज तो आना नहीं है। रब तेरे घर वाले को भी और तरक्की दे। Ó
मैं अभी कुछ बोलना ही चाहता था कि हमारे मकान मालिक ने कहा, 'लेना है तो लो नहीं तो चलते बनो । जब तुमसे कह दिया है कि ये पहले ही बधाई अपने शहर में दे चुके हैं तो क्यों जिद्द कर रही हो तुमÓ
'अरे अब ये कौन है.. ,Ó जोर से ताली बजाती हुई कांता की साथी बोली।
'मैं इस मकान का मालिक हूं। अब चलती हो या बुलाऊं पुलिस को।Ó अंकल ने गुस्से से कहा।
'पुलिस को बुलाएगा.. जा बुला। यहीं सारे कपड़े उतार दूंगी .. समझा न हमसे पंगा मत लेना।Ó कांता भी गुस्से से गुर्राने लगी। माहौल में काफी गर्मी आ गई। अंकल भी कहां मानने वाले थे। उन्होंने कांता की बाजू पकड़ कर उसे बाहर निकालना शुरू कर दिया। लेकिन तभी मेरी पत्नी तेजी से आगे आई और उसने कांता को छुड़वा दिया।
'नहीं अंकल रहने दो, इन्हें कुछ मत कहो, अपशगुन होगा। मैं कुछ करती हूं।Ó वह कांता को अपने कमरे में ले गई और हाथ जोडक़र उसकी विनती करने लगी।
ये देखकर मुझे भी काफी गुस्सा आया। मैंने कहा यदि ये कुछ नहीं लेना चाहती तो न ले,कोई जबरदस्ती नहीं है।
लेकिन मेरी पत्नी नहीं मानी। वह उसे खाली हाथ नहीं लौटाना चाहती थी। उसके मन में किन्नर के मुंह से निकलने वाले अपशब्दों को लेकर वहम था। काफी मिन्नत तरले के बाद कांता मान गई। लेकिन तब तक तनाव काफी बढ़ गया था। कांता पांच सौ रुपए लेकर चली गई।
मुझे भी दफ्तर को निकलना था। सारे रास्ते जो कुछ घर पर हुआ वही दिमाग में घूम रहा था। पता ही नहीं चला कब रेड लाइट क्रॉस हो गई।
'रोको रोको,Ó पेड़ के पीछे से निकले ट्रैफिक पुलिस कर्मी ने मुझे रोका।
'लायसेंस निकाल, आरसी दिखा।Ó मेरी मोटर साइकिल रोकते हुए उसने आदेश जारी कर दिया और चाबी निकालकर मुझे बाइक साइड पर लगाने को कहा।
'सॉरी यार.. आगे से नहीं होगा। पहली बार गलती हुई है । छोड़ दोगे तो बड़ी कृपा होगी। Ó आग्रह भरे लिहाज से मैंने कहा।
'पकड़े जाने पर सभी ऐसा कहते हैं, अभी एक्सिडेंट हो जाता तो .. Ó सिपाही ने कहा।
'यार मैं प्रैस (पत्रकार) में हूं, थोड़ा तो लिहाज करो।Ó बाइक खड़ी करते हुए मैंने कहा।
'पत्रकार हो तो क्या रूल तोड़ोगे।Ó
'नहीं ,भाई साहब बात वो बात नहीं है, मैं जरा टेंशन में था। Ó
'क्यों क्या हुआ? Ó सिपाही ने पूछा। मैंने कांता से हुए विवाद के बारे में उसे बताया।
'फिर तो बहुत बड़ी रेड लाइट से बचकर आए हो .. ये तो छोटी सी है। इस बार छोड़ देता हूं। आगे से ध्यान रखना। कभी रेड लाइट क्रॉस नहीं करना। हमारा कुछ नहीं ,आपकी सुरक्षा के लिए ही बोल रहा हूं।Ó मैं धन्यवाद करके चलता बना। शायद दिन अच्छा था। दो -दो रेड लाइटों से एक साथ बच गया ।
इन्द्रप्रीत सिंह