Tuesday, October 26, 2010

कश्मीर डायरी

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इंटरनेशलिस्ट डेमोक्रेटिक पार्टी (आईडीपी ) के राष्ट्रीय प्रधान मास्टर खेता सिंह के नेतृत्व में सात सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल द्वारा 15 से 17 अक्टूबर तक कश्मीर का दौरा

उद्देश्य - कश्मीर के राजनीतिक माहौल के बारे में प्रत्यक्ष जानकारी हासिल करना और इससे जुड़े मुख्य पक्षों से बातचीत के आधार पर वर्तमान समस्या के शांतमयी हल की संभावनाओं को तलाशना। आईडीपी का जम्मू में सक्रिय यूनिट है जिसने कश्मीर के अलगाववादी नेताओं के साथ बैठकों का प्रबंध करने में अहम भूमिका निभाई।
प्रतिनिधिमंडल ने हुर्रियत कांफ्रेंस े चेयरमैन मौलवी मीरवाइज उमर फारूक,हुर्रियत से अलग हुए ग्रुप के चेयरमैन सैय्यद अली गिलानी ,जम्मू कश्मीर लिबरेशन फं्रट (जेकेएलएफ) के चेयरमैन यासीन मलिक,जेके डेमोक्रेटिक फ्रीडम पार्टी के चेयरमैन शब्बीर अहमद शाह (जम्मू जेल में बंद) की पत्नी डॉ बिल्कीस और इसके कार्यकारिणी प्रधान मौलाना मोहम्मद अब्दुला टेहरी साहिब के अलावा श्रीनगर गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान कमल नैण सिंह से मुलाकात की।
उपरोक्त ग्रुपों से विस्तृत चर्चा और आम आदमी के साथ अंतरक्रिया ने हमें निम्र समझ बनाने में सहायता कीद्ध

संक्षिप्त सार- जम्मू कश्मीर में चीन के बढ़ रहे प्रभाव के कारण मामले को हल करने के लिए भारत का हित दांव पर लगा हुआ है। अमरीका और भारत के संबंध सुधरने के बाद पाकिस्तान ने चीन के रूप में मजबूत साथी ढूंढने का रास्ता तलाश लिया ,जिसने भारत के पड़ोस में मजबूत फौजी आधार तैयार करने के लिए मकबूजा कश्मीर के 37000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर कब्जा कर लिया है। कश्मीर नेता बेशक चीन के तानाशाही रवैये के लंबे समय में पडऩे वाले प्रभाव की असलीयत को महसूस नहीं कर रहे हैं लेकिन उत्साहवर्धक सोच यह है कि वह मसले का हल त्रिपक्षीय वार्ता के जरिए शांतमयी राजनीतिक हल करना चाहते हैं।

मौजूदा स्थिति- हाल ही में संसद के सर्व दलीय प्रतिनिधिमंडल का श्रीनगर का दौरा करने से कश्मीरी नेताओं को शांतमयी हल तलाशने की उम्मीद बनी थी लेकिन क जम्मू कश्मीर समस्या के शांतमयी राजनीतिक हल के लिए संयुक्त संसदीय समिति गठित करने की अपील करने के बावजूद सरकार ने गैर राजनीतिक माहिरों की तीन सदस्यीय कमेटी का गठन कर दिया जो विवादित मुद्दे का अध्ययन करेगा। कश्मीरी नेता इसे उत्साही संकेत नहीं मानते और भारत सरकार को विश्वास बहाल करने के लिए राजनीतिक व्यक्तियों को इस प्रक्रिया में शामिल करना चाहिए।

संभावी हल -आईडीपी भी यह महसूस करती है कि मसले का हल पाकिस्तान को बातचीत में शामिल किए बिना संभव नहीं है क्योंकि वह भी त्रिपक्षों में बड़ा पक्ष है। इसी तरह अमरिका भी त्रिपक्षीय बातचीत से पीछे रहकर भ मसले को सुलझाने में मदद कर सकता है, क्योंकि वह चीन के प्रभाव को खत्म करना चाहेगा। आईडीपी मजबूती के साथ महसूस करती है कि अलगावादी नेताओं को निरंतर कमश्ीर से बाहर भारत के अन्य हिस्सों में भी जाना चाहिए और लोगों के साथ अंतरक्रिया में पडऩा चाहिए ताकि दोनों पक्ष एक दूसरे के नजरिए से परिचित हो सकें। कश्मीरी नेताओं ने भी इस प्रस्ताव का स्वागत किया है और अमरीका के राष्ट्रपति बराक ओबाला के भारत दौरे के बाद देश में आयोजित किसी भी कार्यक्रम में शामिल होने की स्वीकृति दी है।

गोली मसले का हल नहीं- आईडीपी के साथ चर्चा के दौरान कश्मीरी नेता इस बात पर सहमत थे कि गोली से भविष्य में परिणाम हासिल करना संभव नहीं है। लेकिन कश्मीर के मोहल्लों में हर रोज हो रह उग्र प्रदर्शनों के बारे में वह क्या सोचते हैं? सैय्य अली शाह गिलानी के अलावा अन्य लगभग सभी कश्मीरी नेता गिलानी द्वारा जारी कैलेंडर को जारी करना सही नहीं समझते लेकिन वे खुले तौर पर इसका विरोध नहीं करते क्योंकि वह आंदोलन में फूट को दर्शना नहीं चाहते। उनकी इस खामोशी को लोग कैलेंडर को समर्थन मानते हैं और लोग भी इसको समर्थन दे रहे हैं। कश्मीरी सार्वजनिक तौर पर बेशक आंदोलनकारी पहुंच को समर्थन देते हों लेकिन व लगातार हो रहे बंद और हड़तालों के खिलाफ हैं जो निरंतर उनकी रोटी को छीन रही हैं। एक अनुमान के अनुसार कश्मीर में लगभग 45 हजार लोग बेरोजगार हो गए हैं। लाल चौक में एक चार मंजिले बड़े होटल जहांगीर (जिसमें प्रतिनिधमंडल ठहरा था) आम तौर पर सौ से ज्यादा कर्मचारी काम करते थे लेकिन अब केवल तीन चार कर्मचारी ही रह गए हैं क्योंकि बिगड़े हालातों के कारण पर्यटक नहीं जा रहे हैं।

युवाओं की शमूलियत- इन दिनों कश्मीरी नौजवानों के आंदोलन में कूदने से भारत की चिंता बढ़ गई है,लेकिन कश्मीरी नेताओं का दावा है कि यह कश्मीरियों की चौथी पीढ़ी का गुस्सा है क्योंकि वह भी स्वाभिमान से जीना चाहते हैं। यह उनके लिए बेरोजगारी की समस्या नहीं बल्कि पहचान, स्वाभिमान और राजनीतिक स्वतंत्रता का मसला है। आईडीपी का मानना है कि भारत को तुरंत गंभीरता दिखाने की जरूरत है अन्यथा मामला हाथों से निकल भी सकता है।

पाकिस्तान या आजादी-अलगाववादी नेताओं में आम सहमति है कि जम्मू और लद्दाख पूरे जम्मू कश्मीर राज्य का हिस्सा रहने चाहिए। इन ग्रुपों में पाकिस्तान के साथ जाने की कोई बड़ी भावना नहीं है जबकि वह भारत और पाकिस्तान के बीच जम्मू कश्मीर को एक बफ्फर स्टेट बनाना चाहते हैं। यदि भारत राजनीतिक हल चाहता है तो बातचीत शुरू करने से पहले अलगाववादी नेताओं का भी नुक्ता स्वीकार करना चाहिए। इसके शुरूआती रूप में कश्मीर को जबरदस्ती भारत का अटूट अंग कहने के बजाए इस मुद्दे को विवादित मानना चाहिए। विभिन्न समय से लगातार 23-24 साल से जेल में बंद शब्बीर शाह और उस जैसे राजनीतिक कैदियों की रिहाई विश्वास वाला माहौल बनाने में सहायता कर सकती है।

रिपोर्ट जारीकर्ता


करनैल सिंह जखेपल
महासचिव प्रांतीय कमेटी पंजाब।
संपर्क- 9417485060,9436227256

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