हम दोहरी जिंदगी जी रहे हैं। हमारे नेताओं का तो आचरण ही ऐसा हो गया है कि अब कोई भी नेता युवाओं के लिए रोल मॉडल बनकर नहीं उभर रहा। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल की पत्नी सुरिंदर कौर बादल की कैंसर से जूझते हुए मृत्यु क्या हुई, इन नेताओं ने अपना दुख जाहिर करने के लिए तमाम अखबारों को इश्तिहारों से भर दिया। 24 मई को सुरिंदर कौर बादल ने पीजीआई में दम तोड़ दिया। वह पिछले तीन चार साल से कैंसर से पीडि़त थीं,परिवार और सरकार ने उन्हें बचाने के लिए करोड़ों रुपए बहाए लेकिन सांसों की डोर छूट गई।
देश भर के नेता,मंत्री, विधायक ,उद्योगपति और आम लोग मुख्यमंत्री के साथ दुख व्यक्त करने के लिए आ रहे हैं। अधिकांश आम लोगों को तो शायद मुख्यमंत्री व उनके बेटे सुखबीर बादल जानते तक नहीं होंगे , ये फेसलैस लोग यदि मुख्यमंत्री के परिवार से सहानुभूति व्यक्त करने आ रहे हैं तो सचमुच उन्हें दुख हुआ होगा। लेकिन जो लोग केवल अखबारों पूरे पूरे पेज इश्तिहार के रूप में देकर अपने आप को सबसे बड़े दुखियों में शुमार कर रहे हैं, मेरी तो उनसे केवल इतनी गुजारिश है कि सुरिंदर कौर बादल पहली ऐसी महिला नहीं हैं जो कैंसर से मरी हैं बल्कि पंजाब में लगभग हर दो दिन बाद ऐसी मौत हो रही है और इनमें बड़ी संख्या उन गरीब मजदूरों की है जिनकी तो इतनी हैसियत ही नहीं है कि वह कैंसर के इलाज के लिए डॉक्टरों को फीस दे सकें, डॉक्टरों द्वारा लिखी हाई ब्रांडेड दवाओं को खरीद कर अपने मरीज को बचाने की कोशिश कर सकें। इसलिए यदि विज्ञापनों पर खर्च किए जाने वाला करोड़ों रुपया पंजाब सरकार और एसजीपीसी द्वारा बनाए गए कैंसर रिलीफ फंड में जमा करवा देते तो शायद बीबी सुरिंदर कौर बादल को यह सच्ची श्रद्धाजंलि होती क्योंकि इस फंड से उन गरीब कैंसर पीडि़तों को भी बचाने की कोशिश हो जाती जो केवल इलाज के अभाव में ही मर रहे हैं।
मेरी एक गुजारिश बादल परिवार से भी है कि उनके परिवार ने कैंसर का दंश झेला है यदि वह चाहें तो बीबी बादल की याद में उसी तरह का कैंसर अस्पताल या रिसर्च इंस्टीट्यूट बना सकते हैं जैसा सुनील दत्त ने अपनी पत्नी नर्सिस दत्त के लिए ,एनटी रामा राव ने अपनी पत्नी बसावा थकरम की याद में और इमरान खान ने अपनी मां सौकत खानम की याद में बनाया है। ये सभी चेरिटेबल अस्पताल हैं जहां गरीब भी अपने मरीजों का इलाज करवा सकते हैं।