Saturday, September 19, 2009

मां, तुम्हें कैसे माफ कर दूं

तीन पन्नों का पत्र हाथ में लिए बीमार रश्मी की आंखों से अविरल आंसुओं की धारा बह रही थी। बहती भी क्यों न आखिर 22 साल बाद उसकी बेटी ने उसे खत लिखा था। यह बात अलग है कि खत के जरिए उसने ऐसा तमाचा रश्मी की आत्मा पर मारा था कि उसे अंदर तक झकझोर दिया। वास्तव में यह पत्र उसके अपने द्वारा अपनी बेटी रोहिणी को लिखे पत्र का जवाब था। रश्मी नहीं जानती थी कि जहर से भरे शब्दों का पत्र लिखकर रोहिणी उसके पूरे अतीत को उसकी आंखों के सामने रख देगी
वह दो बार खत पढ़ चुकी थी और इस आशा में कि शायद तीसरी बार पढऩे से पत्र में लिखे शब्दों के अर्थ बदल जाएंगे, वह फिर से पढऩे लगी।

श्रीमति रश्मी जी
आपका पत्र मिला,मुझे नहीं पता कि आपने मेरा पता कहां से लिया लेकिन 22 साल बाद आपको अपनी बेटी को याद आई ,इसकी मुझे खुशी है। मेरी खुशियों में आग लगाकर आपने बरसों पहले जो अपना नया आंगन रोशन किया उससे आप मां जैसा पवित्र दर्जा खो चुकी हैं। इसलिए पत्र की शुरूआत आपको नाम लेकर कर रही हूं लेकिन मेरे संस्कार भी इतने मरे हुए नहीं हैं कि मैं आपको मां न कह सकूं ,आखिर आपकी वजह से मेरा अस्तित्व है।
यह ठीक है कि पापा से झगडक़र तुमने किसी और के साथ अपना घर बसा लिया लेकिन क्या मैं यह जान सकती हूं कि आप दोनों के झगड़े में मेरा क्या कसूर था? अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने की आपकी महत्वाकांक्षा की मुझे कितनी बड़ी कीमत चुकानी पड़ी क्या आपको इस बात का अंदाजा है? पांच साल की जिस बच्ची से आपने अपनी ममता की छांव सिर्फ इसलिए छीन ली क्योंकि आपको उसके पापा से नहीं बल्कि किसी और से प्यार था? अच्छा होता कि ये सभी बातें आप अपनी शादी से पहले पापा को बतातीं
मां,मुझे अच्छी तरह से याद है जब पापा दुकान पर चले जाते तो किस तरह तुम फोन पर किसी अनजान आदमी से घंटों बातें करतीं,धीरे-धीरे फुसफुसाते हुए उन रोमानी बातों से अनजान मैं इंतजार करती रहती कि कब तुम फोन छोड़ोगी और मेरी उन शिकायतों को सुनोगी जो मुझे मेरी टीचर या सहपाठियों से होती।
मैं जानती हूं तुम चंद्र मामा से प्यार करती थी लेकिन क्या यह जरूरी था कि तुम मुझे उन्हें मामा कहने को कहती जबकि तुम्हारा रिश्ता उनके साथ कुछ और था। मुझे नहीं पता कि पापा को तुम्हारी ये हरकतें कितनी पता थीं लेकिन अक्सर उनके साथ तुम्हारे होने वाले झगड़े में उनका नाम आने से अब मुझे यकीन हो चुला है कि हर बार झगड़े की वजह चंद्र अंकल ही रहे होंगे। चंद्र अंकल जो शादी से पहले आपके न सिर्फ पड़ोस में रहते थे बल्कि सहपाठी भी थे, के साथ आपकी शादी क्यों नहीं हुई मैं नहीं जानती लेकिन आप मेरे बालमन का फायदा उठाकर उन्हें तब तब मिलतीं जब नाना- नानी मौसी के यहां जाते तो तुम्हें दो चार दिन अपने घर बुला लेते ताकि घर की सुरक्षा हो सके।
मुझे आज भी वो कयामत की रात याद है जब खेलते-खेलते मेरे पांव के अंगूठे पर काफी चोट आ गई,मैं देर शाम तक कराहती रही। नानी के घर हम अकेले थे और तुम मुझे जल्दी सुलाने के लिए बजिद थीं। पर पांव में दर्द के कारण नींद मेरी आंखों से काफूर थी,पता नहीं तुमने मुझे कौन सी दवा दी,मुझे कुछ ही देर बाद हलकी सी नींद आ गई। जब नींद खुली तो तुम किसी गैर आदमी के साथ खुसर फुसर कर रही थीं। मैं तब नहीं जानती थीं कि वह सब क्या था लेकिन आज सब समझती हूं। मुझे अच्छी तरह से याद है यह आवाज पापा की नहीं थी,पापा नहीं तो और कौन? अभी मैं इसके बारे सोच ही रही थी कि बाहर किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज ने आप दोनों के होश फाख्ता कर दिए, थोड़ा ऊंचे बोलते ही मैं पहचान गई कि यह चंद्र अंकल हैं लेकिन इतनी रात को हमारे घर क्यों आए हैं और सीढिय़ां चढक़र छत के रास्ते से अपने घर क्यों जा रहे हैं? मुझे समझ नहीं आ रहा था। कपड़े पहनकर आप दरवाजा खोलने गई।
ये पापा थे। उन्हें फिर से शराब पीए अचानक आए देखकर आप सहम गईं। पापा जोर जोर से बोल रहे थे,मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था । मुझे मालूम था कि पापा आज फिर तुम्हें मारेंगे क्योंकि उन्होंने आज बहुत पी रखी है। पर्दे के पीछे सहमे खड़े मैंने देखा, पापा ने जोर से तुम्हें तमाचा मारा और बाहर निकल गए। तुम रोते- रोते उन्हें कोस रही थीं। तुम्हारी आंखों की नींद उड़ चुकी थी तो मेरे पैर का दर्द। पता नहीं कब आंख लग गई।
अगले दिन नाना नानी भी आ गए। तुमने उन्हें अपने घर जाने से साफ मना कर दिया। लेकिन पता नहीं नाना ने मेरे बारे में क्या बात की? लेकिन मुझे अब अंदाजा लगाना मुश्किल नहीं है कि उन्होंने तलाक में मुझे बाधा बताया होगा। तुमने एक बार भी मेरे बारे में नहीं कहा और मौसी के जरिए मुझे पापा के पास भिजवा दिया। मैं कितने दिन रोती रही। पापा मुझे चुप करवाते और मेरे मन से तुम्हे निकालने के लिए क्या- क्या बातें करते,बताते कि तुमने नया बुआय फ्रैंड रख लिया है। धीरे धीरे दिन बीतते गए,मैं रोज स्कूल में तुम्हारा इंतजार करतीं कि शायद कभी तुम आओ,शायद तुम्हें मेरी याद खींच लाए लेकिन तुम कभी नहीं आईं। पापा मुझे स्कूल के लिए तैयार करते और छोडक़र आते ,फिर लेने आते । धीरे-धीरे मेरे मन पटल से तुम्हारी याद धूमिल होने लगी। दादी पापा को कई बार मेरे लिए नई मां लाने को कहती लेकिन पापा मना कर देते।
कुछ सालों बाद दादी भी हमें छोडक़र चली गई,मैं और पापा अकेले रहे गए। पापा ने अब शराब पीना भी छोड़ दिया लेकिन तुम्हें भुलाने के लिए उन्होंने जितनी शराब पी,उसने उनके गुर्दे खराब कर दिए। मैं जानती हूं पापा मुझसे कितना प्यार करते थे,इसलिए मुझे छोडक़र जाने से पहले उन्होंने रवि जैसे सुशील लडक़े के हाथों में सौंपकर अपनी आंखें बंद कर लीं।
मां, तुम्हें भूलने के लिए तो शायद मुझे वक्त लगा हो लेकिन पापा को मैं कभी नहीं भूल सकती और पत्र में तुमने जो माफ करने की बात की है तो बताओ मां, मैं तुम्हें कैसे माफ कर दूं? और तुम्हें माफ करके मैं उन माओं का समर्थन नहीं कर सकती जो अपनी देह सुख के लिए बच्चों की कोमल भावनाओं से खिलवाड़ करने से बाज नहीं आतीं। अच्छा होगा तुम मुझे अब सदा के लिए भूल जाओ,क्योंकि मैं ऐसा कर चुकी हूं
रोहिणी।

1 comment:

Megha Mann said...

Is this a true story??/ Very touching and very unfortunate. I wonder If there are mothers like that.