Tuesday, July 14, 2009

वीकली ऑफ

वीकली ऑफ

आज वीकली ऑफ के दिन खूब मजे करने के इरादे से सुबह उठते ही रवि ने किरण से दो तीन बढिय़ा चीजें बनाने को कहा और बताया कि उसके दो दोस्त अपनी बीवियों के साथ हमारे यहां लंच पर आ रहे हैं। इससे पहले की किरण रवि से पूछ पाती कि नाश्ते में आज वह क्या बनाया जाए आंखे मलते हुए रवि के बेडरूम में आ रहे रोजी और बंटी ने अपनी मम्मी को बताया कि वह इडली और डोसा खाना चाहते हैं वह बनाया जाए। पति और बच्चों की फरमाइशें सुनकर किरण रसोईघर में जाने के लिए उठी ही थी कि उसे याद आया कि सिलेंडर तो खत्म होने को है।
रवि स्कूटर पर जाकर शर्मा जी से सिलेेंडर ले आओ,यह तो खत्म होने वाला है ऐसा न हो कि मेहमान घर आ जाएं और उधर सिलेंडर खत्म हो जाए
ओह हो एक तो हफ्ते बाद एक छुट्टी आती है वो भी अब तुम्हारे घर के कामों में बर्बाद कर दूं,मुझे नहीं पता तुम खुद ही रिक्शे पर जाकर ले आओ,मुझे कुछ देर सोने दो।
मैं कैसे ला सकती हैं,बच्चों के लिए अभी नाश्ता तैयार करना है और साढ़े आठ बज गए हैं अब और कितनी देर सोना है तुम्हें,किरण ने अपनी मजबूरी जाहिर की।
जाओ यार यहां से तंग पता करो,लाना है लाओ नहीं तो खाना होटल से मंगवा लो,मुझे कुछ देर सोने दो,वीकली रैस्ट का मजा खराब मत करो
छुट्टी मनाने का इतना ही शौक है तो दोस्तों का दावत क्यों दी,खीझते हुए किरण बोली और माथे पर तिओयडिय़ां चढ़ाते हुए रसोई की तरफ बढ़ गई।
बहु पानी गरम हो गया,जैसे ही यह आवाज किरण के कानों में पड़ी उसका पारा और चढ़ गया, पानी कहां से गरम करूं पिता जी सिलेंडर खत्म होने वाला और आपके बेटे को छुट्टी मनाने की पड़ी है।
एक घंटे बाद रवि उठा और शर्मा जी के यहां से सिलेंडर और मंडी से सब्जियां लाकर उसने किरण के हवाले कर दी।
नहाकर तैयार हो जाता हूं कहीं पानी न चला जाए,बच्चे कहां हैं
सिलेंडर आया देख थोड़ी ठंडी हुई किरण ने कहा 411 वालों के यहां गए हैं,खेलने।
चलो अच्छा हुआ,तुम शांति से काम कर सकोगी,नाश्ता तो कर गए हैं न, कहते हुए रवि बाथरूम में घुस गया।
कहां कर गए हैं,सिलेंडर तो चाय रखते ही खत्म हो गया था,किरण की आवाज रवि के बाथरूम का दरवाजा बंद करते ही टकरा कर लौट आई।
दस बजने को हैं ये शंाति क्यों नहीं आई अभी तक,सारे बर्तन साफ करने को पड़े हैं,कपड़ों से मशीन भरी पड़ी है। किरण बुदबुदाई। रवि जरा मीना के यहां फोन करके पता करना,ये
शांति की बच्ची अभी तक क्यों नहीं आई,लेकिन बाथरूम में चल रहे पानी के शोर में किरण की आवाज दब कर रह गई।
नहाकर जैसे ही रवि बाथरूम से निकला तो उसने देखा किरण बर्तन साफ करने में जुटी है। भूख ने उसके पारे को और बढ़ा दिया,अब क्या खाना भी नहीं मिलेगा
खाओगे किसमें ,एक भी बर्तन साफ नहीं है
शांति कहां हैं,जब ये वक्त पर आ नहीं सकती तो किसी और को रख लो काम पे,कम से कम खाना तो वक्त पर मिले। दो अलग अलग बातों को एक ही वाक्य में समेटते हुए रवि बोला।
तुमसे कहा था तो फोन करके मीना के यहां से पूछ लो लेकिन तुम सुनते कब हो। अब छोड़ो पांच मिनट इंतजार करो मैं बना देती हूं तुम्हें कुछ।
बुदबुदाते हुए रवि ने पूछा बाबूजी ने नाश्ता कर लिया।
हां उन्हें दूध के साथ ब्रैड दे दी थी,वैसे भी वह हलका ही नाश्ता करते हैं
नाश्ते से फ्री होते ही किरण बिना नहाए धोए रसोई में दोपहर का खाना बनाने में जुट गई।
आपके दोस्त आते ही होंगे,काम जल्दी निपटना होगा,ऐसा करो कम से कम तुम तो तैयार हो जाओ... और तुमने ये क्या कुर्ता पायजामा पहन रखा है,कम से कम कपड़े तो बदल लो
अरे भई कपड़े निकालकर तो दो,और उन्हें आने में अभी एक घंटा बाकी है
अलमारी से कपड़े भी निकाल नहीं सकते ,इन साहिब को हर चीज हाथ में चाहिए, खीझती हुई किरण अलमारी से कपड़े निकालने लगी, अभी सब्जियां काटनी हैं,आटा गूंथना है कितना काम बाकी है।
सब्जियां चढ़ाकर किरण भी नहाने चली गई।बच्चों को भी नहला कर किरण ने तैयार कर दिया।
थोडी़ देर बाद ही रवि के दोस्त और उनके बीवी बच्चे घर में आ गए। हाल में बैठाकर रवि उनकी खातिरदारी में लग गया। किरण पानी लाना,किरण खाना लगा दो,किरण ये ला दो,वो ला दो के बीच चक्कर लगाते लगाते किरण थक चुकी थी लेकिन रवि की फरमाइशें पूरी नहीं हो रही थीं।
शाम चार बजे जब सारे मेहमान चले गए तब जाकर कहीं किरण ने चैन की सांस ली।
वह थोड़ी देर लेटना चाहती थी लेकिन तभी बाबूजी के आवाज ने उसके इस अरमान पर पानी फेर दिया,बहू जरा चाय तो बना दो,सोचता हूं थोड़ी दूर टहल आऊं। चाय बनाकर जैसे ही बाबू जी को दी,बच्चे उठ गए,रवि सो चुका था। बच्चों को कुछ खिला पिलाकर अभी उसे थोड़ी फुर्सत हुई थी कि काम वाली शांति बाई ने बैल बजाकर उसके चैन में खलल डाल दिया।
शांति को देखते ही किरण भडक़ उठी,क्या शांति ये तुम्हारे आने का टाइम है,सारा काम मुझे खुद करना पड़ा,नहीं आना होता तो कम से कम बता तो दिया करो,तुम्हें मालूम है कि कितनी परेशानी हुई आज। एक ही सांस में किरण बोल गई।
क्या करूं बीबी जी आज मेरे मर्द ने काम पर नहीं जाना था,कहने लगा आज मेरे पास रह, शांति ने अपनी राम कहानी सुनानी शुरू कर दी।
चल छोड़ अब रहने दे,जल्दी से कपड़े धो ले,पानी आ गया,सारे कपड़े गंदे हो गए हैं। दो घंटे शांति के साथ कपड़े धुलाने और सफाइयों के बाद किरण डिनर बनाने में जुट गई। सबको खाना खिलाकर जब रात को बिस्तर पर लेटी तो रवि अपनी रूमानियत पर उतर आया।
अब तंग मत करो,सो जाओ चुपचाप,मैं भी थक गई हूं
क्या थक गई हूं,रोज तुम्हारा यही हाल है। कम से कम छुट्टी वाले दिन तो मान जाया करो
छुट्टी,छुटी छुट्टी तुम्हारी तो छुट्टी है मुझसे क्यों ट्रिपल शिफ्ट में काम करवा रहे हो? आखिर भडक़ उठी किरण



इन्द्रप्रीत सिंह

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